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Wednesday, 6 November 2019

दरबारों के कंख (नवगीत) - राजपाल सिंह गुलिया

दरबारों के कंख
(नवगीत)

प्रेम भाव की दावत में जब ,
बँटी जूतियों दाल .
जीत रहे अपराधी मिलकर ,
राजनीति का खेल .
बोता फिरे बागवाँ देखो ,
कदम कदम विषबेल .
लात पेट पर मार भूख ने ,
दागे कई सवाल .
डाल गए ये अपनेपन में ,
साम दाम औ' भेद .
अपने करते संबंधों की ,
नैया में अब छेद .
हुआ ताल के जल का मालिक ,
हरा भरा शैवाल .
उड़ा रहे हैं श्वेत कबूतर ,
नोंच नोंच कर पंख .
अवसरवादी बन बैठे सब ,
दरबारों के कंख,
पूजन करें पेट का फिर ये ,
करें भूख हड़ताल
-०-
राजपाल सिंह गुलिया
गाँव - जाहिदपुर,  डाकखाना - ऊँटलौधा
तहसील व जिला - झज्जर (हरियाणा)
 -०-
***
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