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Wednesday, 6 November 2019

दोस्ती (बाल कहानी) - रशीद ग़ौरी

दोस्ती
(बाल कहानी)
छुट्टियाँ बिताने के बाद बच्चे अपने-अपने स्कूल लौटने लगे थे। स्कूल में काफी चहल-पहल थी। बच्चे अपने दोस्तों से कई दिनों बाद मिल रहे थे और एक दूसरे को अपनी छुट्टियों के संस्मरण सुना रहे थे।
कुछ दिनों बाद विश्वास नाम का एक लड़का उनकी कक्षा में नया-नया आया । वह नया लड़का किसी से भी बात नहीं करता था । वह अकेला ही रहता।
" आओ दोस्त,आज हमारे साथ बैठकर खाना खाओ। " राजू ने विश्वास को आवाज लगाई ।
" नहीं राजू, अभी नहीं, धन्यवाद।" कहते हुए विश्वास एक तरफ जाकर बैठ गया और अपना टिफिन बॉक्स खोलकर खाने लगा।
राजू ने अपने पास बैठे खाना खा रहे रवि से कहा- "इससे पूछ , यह हमारे साथ खाना क्यूँ नहीं खाता है? हमारा दोस्त क्यूँ नहीं बनता ? "
" अरे मार गोली, घमंडी लगता है। " सामने बैठे कमल ने भी तीर छोड़ दिया।
राजू ने अपना फैसला सुनाया- " अब हम भी इससे बात नहीं करेंगे। आखिर यह अपने आप को समझता क्या है?"
सभी सहमत हो गए। पूरी कक्षा में विश्वास से कोई भी बात नहीं करता था।
कुछ दिनों बाद, विश्वास ने स्वयं उनके साथ घुलना- मिलना चाहा, मगर किसी ने भी उससे सीधे मुँह बात नहीं की ।
उस दिन राजू अपनी नयी स्टार साईकिल पर सामने देखने के बजाय दूसरी तरफ देखते हुए बड़ी लापरवाही से चला जा रहा था। उसे पता ही नहीं चला कि कोई ट्रक बाँयीं तरफ से आ रहा है। चौराहे के मोड़ पर ज्यों ही वह मुड़ा, यमदूत सा ट्रक उसी की ओर आता हुआ दिखा। उसके हाथ- पाँव काँप गए। उसी क्षण, उसके पीछे ही साईकिल पर आ रहे विश्वास ने उसकी कॉलर पकड़कर अपनी ओर खींच लिया। ट्रक के पहिये साईकिल को कुचलते हुए निकल गए । साइकिल चकनाचूर हो गयी।
सभी प्रत्यक्षदर्शी लोग दौड़कर आए । राजू और विश्वास को कोई चोट नहीं आई। मामूली खरौंचों के अलावा।
सभी ने मुक्तकंठ से विश्वास के साहस और सूझबूझ की प्रशंसा की। स्कूल के प्रधानाचार्य और अध्यापकों ने उसे शाबाशी दी। जिला स्तर पर आयोजित पन्द्रह अगस्त के मुख्य समारोह में उसे अपने साहस का परिचय देने के लिए जिला कलेक्टर के द्वारा प्रशंसा-पत्र देकर सम्मानित किया गया।
विश्वास ने राजू को उनके साथ नहीं रहने का कारण बताया- " भाई राजू , उन दिनों मुझे खुजली की बीमारी थी। डॉक्टर साहब ने मुझे दूसरों से अलग रहने को कहा था। इसीलिए मैं तुम सभी से दूर-दूर रहा करता था। ठीक होने पर मैंनें तुमसे दोस्ती करनी चाही मगर तुमने मुझे दोस्त नहीं माना। "
यह सुनकर राजू बहुत शर्मिंदा हुआ। उसने आगे बढ़कर विश्वास को गले लगा लिया - "आज से तुम हमारे पक्के दोस्त।"
सभी दोस्त मुस्कराने लगे । उन्हें एक और अच्छा दोस्त मिल गया था।
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रशीद ग़ौरी 
21- समीर, दिल्ली दरवाजा कॉलोनी,
सोजत सिटी, पाली, (राजस्थान)
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