दो परिवार की डोर मैं
(कविता)
मैं और मेरा ससुरालविवाह के बाद
एक नया जीवन प्रारंभ किया मैंने...
बचपन छोड़कर
एक नया मोड़ लिया मैंने...
लडकियाँ जानती हैं
कि एक दिन ससुराल जाना पड़ता है
पुराना छोड़कर
एक नया संसार बनाना पड़ता हैं
नौ वर्षों में
बहुत कुछ अनुभव किया मैंने..
प्रथम दिन से
आज तक की कहानी क्या कहूँ...
जो गुज़र गया
उसकी रवानी क्या कहूँ
शब्दों पर विचार कीजिये
जो कह दिया मैंने...
-०-
मेघा श्रीवास्तव खरे ‘जलधि’
नागपुर (महाराष्ट्र)
No comments:
Post a Comment