युधिष्ठिर की पीड़ा
(कविता)
युधिष्ठिर को थी पीड़ा भारी
स्वयं को समझ पर बैठे
महाभारत का अधिकारी
ना चैन आया
उन्हें कौरवों के मरणोपरांत
देख धृतराष्ट्र को विचलित रहते
गांधारी ने किया क्षमा उन्हें
परंतु बिलक बिलक यही कहते
हुई भूल मुझसे यह कैसे
कारण वे समझ नहीं पाते समझ नहीं पाते
द्रौपदी समझाती,
उनको नकुल सहदेव गले लगाते
परंतु फिर युधिष्ठिर संताप के
तालाब से बाहर नहीं निकल पाते
बोया जो है वह यही तो काटा जाएगा
खाली हाथ में आया मनुष्य,खाली हाथ ही जाएगा
श्री कृष्ण कहे युधिष्ठिर से
उनकी भी बात वह समझ नहीं पाते हैं
हृदय डूबा घोर अंधेरे में
खुद को एक कोने में पाते हैं
युधिष्ठिर कहते भाइयों से,
मैं सन्यास ले लेता हूं
राज्य और प्रजा को
तुम्हारे हवाले करता हूं
स्वयं को समझ पर बैठे
महाभारत का अधिकारी
ना चैन आया
उन्हें कौरवों के मरणोपरांत
देख धृतराष्ट्र को विचलित रहते
गांधारी ने किया क्षमा उन्हें
परंतु बिलक बिलक यही कहते
हुई भूल मुझसे यह कैसे
कारण वे समझ नहीं पाते समझ नहीं पाते
द्रौपदी समझाती,
उनको नकुल सहदेव गले लगाते
परंतु फिर युधिष्ठिर संताप के
तालाब से बाहर नहीं निकल पाते
बोया जो है वह यही तो काटा जाएगा
खाली हाथ में आया मनुष्य,खाली हाथ ही जाएगा
श्री कृष्ण कहे युधिष्ठिर से
उनकी भी बात वह समझ नहीं पाते हैं
हृदय डूबा घोर अंधेरे में
खुद को एक कोने में पाते हैं
युधिष्ठिर कहते भाइयों से,
मैं सन्यास ले लेता हूं
राज्य और प्रजा को
तुम्हारे हवाले करता हूं
Very nice poem,
ReplyDeleteNice,carry on 😊
ReplyDeleteNice one. Keep it up
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