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Tuesday, 18 February 2020

ऐ चांद! वो तेरा हमशक्ल है (कविता) - सुरेश शर्मा


ऐ चांद! वो तेरा हमशक्ल है
(कविता)
रातों को सोने की तरकीब ढूंढता हूं,
करवटे बदल बदल के,
सिलवटे पर जाते है ;
व्यथित हो जाता सारा शरीर 
न जाने नींद कहाॅ चली गई ।
जिसके लिए मै जाग रहा हूं ,
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

नाराज क्यों हो रहा है तू ,
उसका दीदार तो कर लेने दे ;
अपनी शीतलता को थोड़ी देर 
बरकरार रखने की कोशिश कर
क्योंकि, 
तेरी ही रेशमी रोशनी मे ,
जाग रहा हूं मै जिसके लिए ;
वो कोई गैर नही !
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

इतना इतरा मत अपने आप पर,
हो सकता है तेरे चाहने वाले ;
हजारों और लाख मे है ।
मगर,
मेरा बेदाग सुन्दर -सा चांद ,
सिर्फ मेरा और मेरे पास है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।

ऐ चांद तू तो मुझसे लाखो मील दूर है ,
मगर ,
मेरा चांद मेरे पास है ,
मेरा नूर है ,मेरा गुरूर है ;
इसलिए उसके हर नखरे ,
मुझे मंजूर है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
-०-
सुरेश शर्मा
गुवाहाटी,जिला कामरूप (आसाम)
-०-

 ***
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3 comments:

  1. सुन्दर कविता के लिये आप को बहुत बहुत बधाई है आदरणीय !

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    Replies
    1. नमस्ते। धन्यवाद!

      Delete
  2. धन्यवाद ।आभार व्यक्त करते हैं

    ReplyDelete

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