ऐ चांद! वो तेरा हमशक्ल है
(कविता)
रातों को सोने की तरकीब ढूंढता हूं,
करवटे बदल बदल के,
सिलवटे पर जाते है ;
व्यथित हो जाता सारा शरीर
न जाने नींद कहाॅ चली गई ।
जिसके लिए मै जाग रहा हूं ,
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
नाराज क्यों हो रहा है तू ,
उसका दीदार तो कर लेने दे ;
अपनी शीतलता को थोड़ी देर
बरकरार रखने की कोशिश कर
क्योंकि,
तेरी ही रेशमी रोशनी मे ,
जाग रहा हूं मै जिसके लिए ;
वो कोई गैर नही !
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
इतना इतरा मत अपने आप पर,
हो सकता है तेरे चाहने वाले ;
हजारों और लाख मे है ।
मगर,
मेरा बेदाग सुन्दर -सा चांद ,
सिर्फ मेरा और मेरे पास है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
ऐ चांद तू तो मुझसे लाखो मील दूर है ,
मगर ,
मेरा चांद मेरे पास है ,
मेरा नूर है ,मेरा गुरूर है ;
इसलिए उसके हर नखरे ,
मुझे मंजूर है ।
ऐ चांद ! वो तेरा हमशक्ल ही तो है ।
सुरेश शर्मा
-०-
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सुन्दर कविता के लिये आप को बहुत बहुत बधाई है आदरणीय !
ReplyDeleteनमस्ते। धन्यवाद!
Deleteधन्यवाद ।आभार व्यक्त करते हैं
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