देश तरक्की कर रहा है
(मुक्तक कविता)
किसान देश में हरित क्रांति लाया, अनाज का उत्पाद बढ़ाया
सभी का पेट भरता है, बेचारा खुद भूखा रहता है
बढ़ा दी खाद की कीमत चौगुना
मिट्टी के मोल में पड़ता है अनाज बेचना
किसानों की मेहनत पर चलता है धंधा
अभी तक गले में फसा है साहुकार का फंदा
देश तरक्की कर रहा है
सरहद पर जवान कर रहे है, देश की रखवाली
देश की सुरक्षिता के लिए, झेल रहे हैं सीने पर गोली
विपत्ति भरी परिस्थितियों में, खेली खून की होली
उनके त्याग और बलिदान के बदले, हमने दी खाली झोली
देश तरक्की कर रहा है
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में किया विकास
आदिवासियों के जीवन में न ला सके प्रकाश
दिन-ब-दिन बढ़ रही है, आकाश को छू लेनेवाली ईमारतें
पर उनके बाहर बीत रही है, भीख माँगों की सारी रातें
देश तरक्की कर रहा है
अपनी कुर्सी के लिए
मजहब के नाम पर लोगों में भेद किए
नेता अपने कुकर्म से लोगों को आपस में लड़ाते हैं
गरीब युवाओं के खून से अपना चुल्हा जलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
पार्टियाँ देश को लूटने के लिए अपना-अपना मोर्चा खोलती हैं
कुर्सी पाने के लिए, एक-दूसरे को गाली-गलोज करते हैं
किसी एक को बहुमत न मिलने पर, वे गले मिलते हैं
सवाल पूछने पर कहते हैं, जन की सेवा के लिए हम हाथ मिलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
स्वतंत्रता के पूर्व देखे हुए सपने चूर हुए
सत्ता, कुर्सी मिलने पर जनता को भूल गए
अमीरों का रूतबा दिनों-दिन बढ़ रहा है
देश का गरीब सदियों से पीसा जा रहा है
देश तरक्की कर रहा है
कुपोषण, गरीबी या हो महिलाओं पर अत्याचार
भ्रष्टाचार, रिश्वत या हो जनता पर दुराचार
पूर्व हो या पश्चिम, दक्षिण हो या उत्तर
संसार में कोई नहीं है, जो दे सके हम से टक्कर
देश तरक्की कर रहा है
किसान देश में हरित क्रांति लाया, अनाज का उत्पाद बढ़ाया
सभी का पेट भरता है, बेचारा खुद भूखा रहता है
बढ़ा दी खाद की कीमत चौगुना
मिट्टी के मोल में पड़ता है अनाज बेचना
किसानों की मेहनत पर चलता है धंधा
अभी तक गले में फसा है साहुकार का फंदा
देश तरक्की कर रहा है
सरहद पर जवान कर रहे है, देश की रखवाली
देश की सुरक्षिता के लिए, झेल रहे हैं सीने पर गोली
विपत्ति भरी परिस्थितियों में, खेली खून की होली
उनके त्याग और बलिदान के बदले, हमने दी खाली झोली
देश तरक्की कर रहा है
ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में किया विकास
आदिवासियों के जीवन में न ला सके प्रकाश
दिन-ब-दिन बढ़ रही है, आकाश को छू लेनेवाली ईमारतें
पर उनके बाहर बीत रही है, भीख माँगों की सारी रातें
देश तरक्की कर रहा है
अपनी कुर्सी के लिए
मजहब के नाम पर लोगों में भेद किए
नेता अपने कुकर्म से लोगों को आपस में लड़ाते हैं
गरीब युवाओं के खून से अपना चुल्हा जलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
पार्टियाँ देश को लूटने के लिए अपना-अपना मोर्चा खोलती हैं
कुर्सी पाने के लिए, एक-दूसरे को गाली-गलोज करते हैं
किसी एक को बहुमत न मिलने पर, वे गले मिलते हैं
सवाल पूछने पर कहते हैं, जन की सेवा के लिए हम हाथ मिलाते हैं
देश तरक्की कर रहा है
स्वतंत्रता के पूर्व देखे हुए सपने चूर हुए
सत्ता, कुर्सी मिलने पर जनता को भूल गए
अमीरों का रूतबा दिनों-दिन बढ़ रहा है
देश का गरीब सदियों से पीसा जा रहा है
देश तरक्की कर रहा है
कुपोषण, गरीबी या हो महिलाओं पर अत्याचार
भ्रष्टाचार, रिश्वत या हो जनता पर दुराचार
पूर्व हो या पश्चिम, दक्षिण हो या उत्तर
संसार में कोई नहीं है, जो दे सके हम से टक्कर
देश तरक्की कर रहा है
-०-
पता:
पता:
No comments:
Post a Comment