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Thursday, 23 January 2020

धूप से... (कविता) - प्रकाश तातेड़

धूप से... 
(कविता)
धूप!
तुम आते ही
छतों पर पसर गई।
जरा नीचे उतरो
इन अंधेरी गलियों को देखो
जहां नंगे अधनंगे बच्चे
ठंड में ठिठुरते हुए
तुम्हारे आने का
इंतजार कर रहे हैं ।
उनके घरों पर छतें नहीं है
और छतें हैं भी तो
उन पर जाने की सीढ़ियां नहीं है।

ओ सर्दियों की सुहानी धूप!
तुम छतों से उतरो
इन नन्हे कांपते शिशुओं को
अपनी गर्म बाहों में भर लो
गोद में उठा लो -०-
पता-
प्रकाश तातेड़
उदयपुर(राजस्थान)
-०-

***
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