हमारी पहचान
(कविता)
गौ, गीता, गायत्री पहचान हमारी,
गौ सम्पूर्ण जगत की महतारी |
गौ सर्व देवों का पावन वास -
गौ की महिमा तीन लोक में न्यारी ||
गौ किसान को समृद्ध बनाती,
घास-पूंस खाकर अमृततुल्य दुग्ध देती |
पर आज भटक रही दर - दर,
मानवजाति गौ की महिमा आज भुलाती ||
ए मानव ! निज भूल स्वीकार कर,
प्रकृति के कहर का खौफ खा और ड़र |
नित गौ माता की सेवा करके -
अपना घर धन और धर्म से भर ||
गौ, गीता, गायत्री पहचान हमारी,
गौ सम्पूर्ण जगत की महतारी |
गौ सर्व देवों का पावन वास -
गौ की महिमा तीन लोक में न्यारी ||
गौ किसान को समृद्ध बनाती,
घास-पूंस खाकर अमृततुल्य दुग्ध देती |
पर आज भटक रही दर - दर,
मानवजाति गौ की महिमा आज भुलाती ||
ए मानव ! निज भूल स्वीकार कर,
प्रकृति के कहर का खौफ खा और ड़र |
नित गौ माता की सेवा करके -
अपना घर धन और धर्म से भर ||
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