अँधियारा
(कविता)
आशा की स्वर्णिम किरणें फिर ,लायी नवल प्रभात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।
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रंग भेद औ जाति- पाति की,टूटेंगी दीवार ।
क्षमताओं की दीप्त प्रभा में ,छँटे सभी अँधियार ।
ऊँचा रहे मनोबल तो हो ,निराशाओं की मात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।
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जीवन है श्रम और साधना ,सहज सरल मनभाव ।
श्वास डगर के सभी पथिक हैं ,नहीं तनिक ठहराव ।
दृश्य जगत मत उलझ बटोही ,मत कर उर आघात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।
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अभी नहीं हिम्मत हारो तुम ,करो विजय की आस ।
पार क्षितिज के जाना तुमको ,सोच यही हो खास ।
तुम्हें कभी जो छू भी पाए ,दुख की क्या औकात ।
अब होगा उत्थान मनुज का ,तम पर कर प्रतिघात ।।
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