मजदूर....
(कविता)
(कविता)
मजदूर....
तुम्हारी पीड़ा
छलनी कर रही मेरा हृदय,
किस तरह छले जाते हो तुम!!
भारत के नीव के
निर्माता......
तड़प उठती हूं मैं
तुम्हारे पाँवों के छाले देखकर,
आँखों में खून बन
दर्द उतर आता है...
तुम्हारे पीछे
तुम्हारे परिवार का जर्द पड़ा चेहरा
सीने में घाव - सा
बन जाता है...
जब देखती हूं
तुम्हारे पाँवों से रिसता खून
जी करता है..
फेफड़े से नसें निकाल कर
टांक दूँ इन्हें....
खौल उठता है पूरा ज़मीर
जी करता है आग लगा दूं
स्वार्थ से बिके लोगों में.......
-०-
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