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Sunday 1 December 2019

भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता (आलेख) - सुरेखा 'सुनील' दत्त शर्मा


भारतवर्ष में भारतीय पर्वों की सार्थकता

(आलेख)
भारत वर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न पर्वों और त्योहारों को मनाया जाता रहा है। यदि कहां जाए कि भारतीय संस्कृति पर्व ,उत्सव व त्यौहारों में बसती है, तो अतिशयोक्ति न होगी। त्योहार उत्सव पर्व हमारी संस्कृति के मेरुदंड हैं। समाज में जब-जब स्थिरता आई उसकी प्रगति अवरुद्ध हुई, तभी उन्होंने उसे गति प्रदान करने की और मनुष्य को भविष्य के प्रति आस्थावान बनाने में योगदान दिया।
आज की सदी का मनुष्य इन पर्वों को रूढ़िवादिता का परिचायक मानने लगा है ,उसकी दृष्टि में यह तीज त्यौहार पुरातन ता के परिचायक हैं। इनमें आस्था रखने वाला मनुष्य पिछड़ा हुआ है। पुराने विचारों का है। उसे मॉडर्न सोसाइटी का अंग नहीं माना जाता परंतु आज वास्तव में क्या ऐसा है? नहीं! भारतवर्ष में मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व अपने ही देश के हैं वह सार्थक हैं।किसी भी छोटे बड़े त्योहारों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता। इनकी सार्थकता को देखकर प्राचीन मुनियों की बुद्धिमत्ता पर आश्चर्यचकित हो जाना पड़ता है हमारे यहां के अधिकतर त्योहार ऋतु परिवर्तन के सूचक हैं। जैसे होली जाड़े की समाप्ति की सूचक है, दीपावली दशहरा वर्षा की समाप्ति और जाड़े के आगमन के सूचक हैं ,तो हरियाली तीज ,गर्मी की समाप्ति की घोषणा करती है। किसी भी ऋतु का परिवर्तन रोग के आगमन का सूचक भी होता है अतः घर की सफाई बहुत जरूरी हो जाती है। भारतीय लोग इस समय त्योहारों का आयोजन कर घर की स्वच्छता को सबसे जरूरी मानते हैं। अपने घर को अच्छे से साफ सफाई करके सजाते हैं। होली के पश्चात वैशाख मास की कृष्ण प्रतिपदा को मनाए जाने वाला ,बैसाखी का त्यौहार होता है। पंजाब में इसे वर्ष का प्रथम दिवस कहते हैं, इस अवसर पर लोग गंगा में स्नान करते हैं। त्योहारों का संबंध ऋतु परिवर्तन और नई फसल के आगमन की प्रसन्नता से भी है इस त्यौहार के माध्यम से लोग फसल काटने की प्रसन्नता को व्यक्त करते हैं, यह त्यौहार अनेक लोग एक साथ मनाते हैं अतः इसका अपना एक सामाजिक महत्व है!
आषाढ़ मास की प्रचंड गर्मी और वर्षा के आने की सूचना देने वाला त्यौहार हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार सावन महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस त्यौहार को लड़कियों का और सुहागन महिलाओं का त्योहार माना जाता है। सावन में ग्रीष्म से तपे धरती वर्षा की रिमझिम फुहारों से शीतलता प्राप्त करती हैं। झूले पर सभी सखी सहेलियां एक साथ लंबी पींगे बढ़ाते हैं लड़कियां अनोखी प्रसन्नता का अनुभव करती हैं ,मानो उनका बचपन फिर लौट आया हो! पहले समय में लड़की अधिकतर घर के अंदर ही काम में लगी रहती थी! शुद्ध वातावरण में भी उसे सांस लेने का मौका नहीं मिलता था इसलिए सावन के महीने में शादीशुदा महिलाएं भी अपने पिता के घर आकर उस स्वच्छ वायु में सांस लेने का और मौज मस्ती करने का सखी सहेलियों के साथ झूलने सजने संवरने का मौका मिलता था। हरियाली तीज के बाद श्रावणी पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है !इस त्यौहार को भाई-बहन बहुत ही हर्षोल्लास से मनाते हैं बहन ने भाई को राखी बांधती है और मंगल सूचक तिलक करती हैं, इसमें राखी वचन का प्रतीक है ,जो भाई के द्वारा बहन को दिया जाता है !कि अवसर आने पर वह बहन की रक्षा करेगा ,जैसे हुमायूं और कर्म वती का संबंध था, हुमायूं और कर्म वती का भाई बहन का संबंध राजनीतिक कारण से स्थापित किया गया था !यह तो सभी जानते हैं! रक्षाबंधन के समय के कुछ पश्चात भादो के महीने में कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है, यह त्यौहार अन्याय और अत्याचार के शमन का प्रतीक है, जब कंस ने अत्याचार की अति कर दी थी तब कंस का वध करने के लिए कृष्ण ने जन्म लिया था। उसी को हम जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं, वर्षा काल की समाप्ति पर आश्विन शुक्ला दशमी को दशहरा मनाया जाता है, इसमें 9 दिन तक माता की पूजा होती है और देवी के व्रतों का आयोजन किया जाता है दसवें दिन राम के द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष में दशहरा मनाया जाता है! मानो यह याद दिलाया जाता हो कि बहुत अधिक विद्वान होने पर भी यदि व्यक्ति का अहंकार और बढ़ता जाता है, और वह पूर्णता अहंकारी हो जाता है, और दूसरों पर अत्याचार करने लगता है, तो उसका विनाश भी संभव है! मनुष्य को अहंकारी नहीं होना चाहिए, इस त्योहार पर छत्रिय अपने हथियारों को धोकर साफ करके उनकी पूजा करते हैं ।
दशानन विजय के उपरांत कार्तिक मास की अमावस्या को राम के अयोध्या लौटने के उपलक्ष में दीपावली मनाई जाती है ।यह हिंदुओं का आनंद और उल्लास से परिपूर्ण महान सांस्कृतिक त्योहार है ,इसको मनाए जाने के अनेक कारण बताए गए हैं कोई इसे समृद्धि का त्योहार मानता है, कोई इसका संबंध बुद्धि से जोड़ता है, वास्तव में यह भी ऋतु परिवर्तन का ही सूचक पर्व है, वर्षा ऋतु में घर में जो गंदगी और सीलन हो जाती थी इससे पूर्व उसे पूर्णता साफ कर दिया जाता था, दीपावली की सफाई का विशेष महत्व है ।सारे घर को बहुत अच्छे से साफ करके सजाया जाता है ।चूना होता था जिससे घर की पुताई करा कर घर के सारे कीटाणु मार दिए जाते थे घर को पूर्ण तहा कीटाणु रहित बना दिया जाता था और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्राचीन मनुष्यों ने इसका आयोजन किया है।
इस त्योहार पर रात में लक्ष्मी गणेश जी का पूजन किया जाता है ,घर के कोने कोने में सरसों के तेल के दीए जलाए जाते हैं, इसके पीछे भी संभवत यही हमारी भावना रहती है कि सरसों के तेल के धुएं से वातावरण शुद्ध होता है !और यह त्यौहार बहुत हर्षोल्लास से मनाया जाता है घर के प्रत्येक कोने में रोशनी की जाती है ,जिससे पूरा घर जगमग आ जाता है क्योंकि इसमें लोग एक दूसरे के घर आते जाते हैं तथा उन्हें भेंट भी देते हैं।
इस तरह अगर हम देखें तो भारतीय संस्कृति त्योहार बहुत हैं परंतु मनाए जाने वाला कोई भी त्यौहार निरर्थक या निरुद्देश नहीं है ,यह पर्व और त्योहार देश की आर्थिक दशा और ऋतु पर निर्भर है ,इन सभी का आयोजन सामाजिक राजनैतिक और स्वास्थ्य की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए किया जाता रहा है। अतः इन्हें रूढ़िवादिता और पारंपरिक ता से जोड़कर नकार देना सर्वदा अनुचित है यदि हमें अपनी संस्कृति को जीवित रखना है, और अपने बच्चों को हमें इन सब की महत्वता बतानी है, तो हमें उससे जुड़े सभी तीज त्यौहार आयोजनों की अनिवार्यता को समझना होगा, मानना होगा, और स्वीकार करना होगा, जिससे आने वाले हमारे कल, हमारे बच्चे इन त्योहारों के महत्व को समझें जाने और अपने जीवन में उतारें।।
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सुरेखा 'सुनील' दत्त शर्मा
मेरठ (उत्तरप्रदेश)


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