आउटडेटेड
(लघुकथा)
मैं ड्राइंग रुम में बैठा , दबी सी आवाज में बेटे और उसकी मां का वार्तालाप सुन रहा था । बेटा बोला “तुम और पापा मेरे नये मकान में आना चाहते हो तो सारा सामान बेंच दो क्योंकि आउटडेटेड हो गया है । मां सोच में पड़ गई थी कि क्या यही उनका बेटा है
जिसे 1 महीने पहले मकान की किश्त पूरी करने के लियेे अपनी गाढ़ी कमाई दी है । बेटा बोला “मां मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा ।” बेटा बोलते-बोलते ड्राइंग रूम से गुजर रहा था तो भी मुझसे बगैर आंखें मिलाये धड़ाधड़ सीढ़ियां उतर गया । मैं अंदर पहुंचा तो देखा पत्नी की आंखों से अश्रु की अविरल धारा बह रही थी । मैंने पूछा “क्या हुआ ?” पत्नी बोली “आपका बेटा जिस सामान को उपयोग में लाकर पला बढ़ा उसको हीे आउटडेटेड बोल रहा है । फिर जब हम सामान बेचकर उसके घर रहने जाएंगे तो हमको भी आउटडेटेड बोलेगा और बिना सामान के हम लौटेंगे कहां ?” पत्नी का प्रश्न त्रिशूल की तरह मेरी छाती में धंसता जा रहा था ।
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प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा, (राज.)
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