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Sunday 1 December 2019

इसका तोहफा उसके सर (व्यंग्य आलेख) - डॉ दलजीत कौर

इसका तोहफा उसके सर
(व्यंग्य आलेख) 
तोहफा देना -लेना आज समाज की रीत हैं |यह कब शुरू हुई किसने की हमें क्या लेना |बस तोहफों से मतलब होना चाहिए |तोहफे भी कई तरह के होते हैं |कुछ हम बहुत दिल से देते हैं , कुछ काम चलाऊ ,कुछ तो न चाहते हुए भी देने पडतें हैं|दीपावली एक बड़ा मेला हैं तोहफों का |प्रदर्शनी कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा |बाज़ारों में तोहफे खरीदने वालों की भीड़ घरों में तोहफों से भरे कमरे |तोहफों की एक अलग दुनिया | 
इस के बाद बरी आती है तोहफे खोलने की |कोई तोहफा खोलते ही आँखों की चमक बता देती है कि तोहफा पसंद आ गया |कोई तोहफा नाक -भौं सिकोड़ने को मजबूर करता है |कोई तो अपशब्दों तक उतर आता है |यही तोहफे फिर से पैक किए जाते हैं |कोई एक -आध ही घर की ज़रूरत अनुसार या पसंद आने पर घर में रह पाता हैं |अन्यथा ये तोहफे फिर से दूसरों के घर जाने को तैयार हो जाते हैं |घरों से पिछले साल के पड़े तोहफे भी निकल आते हैं |जिनके डिब्बों में विजटिंग कार्ड पड़े होते हैं ताकि पता चल सके कि किसने दिया था |यदि कोई तोहफा फिर उसी के पास चला गया ,जहाँ से आया था तो अनर्थ हो जायेगा| 
फिर लिस्ट बनाई जाती है कि कौन -सा तोहफा किसको देना है |मिसेज़ शर्मा वाला ,मिसेज़ गुप्ता को ,गुप्ता वाला वलियाज़ को |वलियाज़ वाला शर्मा को आदि -आदि |बहुत दिमाग खर्च होता है ,इस सब में |बीच-बीच में शिकायते भी चलती रहती हैं --'ये मेहता जी ज्यादा पैसे खर्च नहीं करते बस हर बार वहीं शोपीस ,छोटा -सा |हमने पिछली बार कितना बड़ा ड्राई फ्रूट का डिब्बा दिया था|ये शोपीस क्या खाने के काम आता है ?ढंग का हो तो घर में रखें या किसी और को देने के काम आ जाए |दीपावली से चार -पांच दिन पहले से तोहफों का आदान -प्रदान शुरू होता है और लोग ऐसे दूसरों पर एहसान करते हुए तोहफा देने आते हैं कि पूछिए मत ----''जगह -जगह जाम लगा है |अभी बहुत काम बाकी पड़ा है |आज दस घर निपटने है |कल बहनों के जाना है |क्या मुसीबत है | तीन -तीन सिस्टर्स हैं ,वह भी एक अम्बाला ,दूसरी पिंजौर और तीसरी नंगल |तीनों दिशाओं में |बस लेना -वेना कुछ नहीं |फुर्सत कहाँ है |'' एक बार तो मुझे लगा कि जैसे कह रहे हों कि क्या मुसीबत है ?पिता जी ने इतनी लड़कियाँ पैदा कर दी|कहाँ -कहाँ जाएँ ?पैदा हो भी गई थीं तो एक घर में ब्याह देते |हमें दीपावली के तोहफे देने में आसानी होती | 
हद तो तब हो गई जब पिछले साल दो सहेलियों में दीपावली पर घमासान हो गया |वह भी तोहफे को ले कर |न जाने कब से मन में आग सुलघ रही थी जो दीपावली पर पटाखा बन कर फूटी |एक सहेली जरा मुहं फटहै |जब दूसरी उसके घर तोहफा देने गई तो उसने तोहफा उसके सामने ही खोल दिया और बोली -----''ये तुम क्या तोहफा लाती |इससे तो अच्छा है मत दिया करो |मै हमेशा तुम्हें हज़ार रूपये से ऊपर का तोहफा देती हूँ और तुम कभी 500 से ऊपर नहीं जाती |पिछली बार तुम्हारे तोहफे में से मिसेज़ एंड मिस्टर लाल का विजटिंग कार्ड निकला था |अगर किसी का तोहफा किसी को देना ही हो तो कार्ड तो निकाल देना चाहिए |उस दिन से तोहफों का आदान -प्रदान तो दोनों में बंद हुआ ही बोल -चाल भी बंद है | 
लोगों की इस तोह्फेबाज़ी से मुझे बहुत घबराहट होती है |मैं तो घर में रहकर सकून से दीवाली मनाती हूँ |जिसे मन किया फोन पर शुभकामनाएं दे दी |बस |क्या मिलता है इन पचड़ों में पड़ कर |दीवाली तोहफों का नहीं रौशनी का त्यौहार है |क्यों न अपने मन में थोड़ी रौशनी कर लें | 
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संपर्क 
डॉ दलजीत कौर 
चंडीगढ़


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