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Tuesday 11 February 2020

अरमान बाँटूँगी (कविता) - सरिता सरस

अरमान बाँटूँगी
(कविता)
आ रही हूँ जीतकर
अरमान बाँटूँगी...!

पीटकर हर शब्द को मैं 
की हथौड़े से नुकीले ,
आँच पर पिघला रही हूँ
मै तुम्हारी भावना को ,
कर रही हूँ आरिओं से 
तेज संचित कामना को ,
वक्त के मुख से मलिन
मुस्कान काटूँगी !
आ रही हूँ जीतकर 
अरमान बाँटूँगी..!

भूख से बेहाल माँ की 
अस्थियाँ स्तन से लिपटी ,
झाँकती है आबरू 
नजरें टिकी शैतान की है ,
दुश्मनों की मौत का 
सामान बाँटूँगी !
आ रही हूँ जीतकर 
अरमान बाँटूँगी...!

रोटियाँ आश्वाशनों की 
सड़क से संसद तलक हैं ,
पेट की भठ्ठी यहाँ
वादे निवालों से भरे हैं ,
छीनकर तेरी हँसी 
मुस्कान बाँटूँगी !
आ रही हूँ जीतकर 
अरमान बाँटूँगी..!
-०-
पता:

सरिता सरस
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

-०-


***
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1 comment:

  1. सुन्दर रचना के लिये हार्दिक बधाई है।

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