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Tuesday, 11 February 2020

जिन्दगी के कांटे गुलाब (लघुकथा) - अपर्णा गुप्ता

जिन्दगी के कांटे गुलाब
(लघुकथा)
मिनी अनाथालय कें प्रबंन्धक के आफिस मे प्रवेश करती है तो प्रबन्धक राम अवतार उठकर उसे सैल्यूट करते है मिनी उन्हे मना करते हुये उनके पैर छूने लगती है , रामअवतार उठाकर उसे गले लगा लेते है ।
उन्हे आज भी वो दिन याद है जब मिनी को अनाथालय के पालने में कोई छोड़ कर गया था ।रात के ग्यारह बजे घन्टी और बच्ची के रोने की आवाज से वो बाहर दौड़कर गये ,तो मिन्नी रो रही थी उन्होने भाग कर उसे गोद में उठा लिया था आज भी गले लगाने पर महसूस हुआ, जैसे मिनी वही है छोटी सी ।
जिलाअधिकारी बन गई थी उनकी छोटी सी मिनी ।
आशु नही आया अभी पापा?.............
"अरे वो तो सुबह ही आ गया था "
आशु भी उन्हे एेसे ही मिला था सड़क पर रोता हुआ। मजाल है पर उस दिन के बाद कभी रोया हो ।
राम अवतार उस वृहद बरगद वृक्ष का नाम था जो अनाथो के लिये पिता तुल्य था । उन्ही के स्नेह का परिणाम था आशु भी आज डाक्टर बन चुका था,जाने कितने बच्चो का उद्धार कर चुके थे वो अपने कर कमलो से। आज इन दोनो का भी नया जीवन शुरु हो रहा था!
बचपन मे ही उपजते प्रेमाकुंरो को पेड़ बनते देख उन दोनो का गठबन्धन जो पक्का कर दिया था, उन्होने और आज का दिन तय कर रखा था।
आशु के आते ही दोनो ने एक दूसरे को छोटे छोटे मेहमानो की उपस्थिती मे अंगूठी पहनाई, मिठाई खाई , सबको खिलाकर आशु ने गुलाब के फूलो का एक गुलदस्ता मिनी को दिया तो मिनी के गाल गुलाब की तरह ही सुर्ख हो गये !
बहुत सारे गुलाब के फूल टोकरी में देखे तो पूछा" अरे डाक्टर इतने सारे फूल और किसके लिये "तो आशु ने कहा" भूल गई हमारे मां बाप भी तो इंतजार कर रहे है "
"अरे हां..............मै तो भूल ही गई "थोड़ी देर के बाद वो दोनो वृद्धाश्रम में सभी को गुलाब का फूल ,मिठाई और कपड़े बांट रहे थे और आशिर्वादो से नवाजे जा रहे थे! कौन कह सकता था कि इनके मां बाप नही है गुलाब के फूलो की महक से पूरा आश्रम महक रहा था ।
-०-
पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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