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Tuesday, 22 September 2020

काल (कविता) - राजीव डोगरा 'विमल'


काल 
(कविता)
मैं तूफानों से निकला हूं
मुझे आंधियों से
अब कोई डर नहीं,
मैं महाकाल से मिला हूं
मुझे काल से
अब कोई डर नहीं ,
मैं अपने अस्तित्व को
मिटा चुका हूँ,
मुझे जीवन से अब
कोई मोह नहीं।
मैं माँ काली से प्रेम
पा चुका हुँ,
मुझे दुनिया वालों से
अब कोई स्नेह नहीं।
-०-
राजीव डोगरा 'विमल'
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
-०-



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