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Thursday, 2 January 2020

नववर्ष (कविता) - प्रज्ञा गुप्ता


नववर्ष
(कविता)
स्वागत नव वर्ष ! स्वागत ! ,
अभिनंदन नववर्ष ! अभिनंदन !

इस दिव्य प्रभात में ,
सूर्य की प्रकीर्णित रश्मियों से ,
जाग्रत करो तुम समूची मानवजाति को ,
इस तरह कुछ , कि ज्ञान का विस्तार हो ,
संदेश मानवता का फैले , दिग-दिगंत ,
वीरानगी दूर हो दिलों से ,
इस तरह नववर्ष ! कि प्यारनेह के फूल खिलें ,
और बसंत कूके ,
दिल गुलशन बने ,
अपनत्व से सिक्त हों
मन की डालियां ,
और फल लगे उन पर ,
सद्भाव और समता के ,
समृद्धि और खुशहाली की बेल बढ़े ,
मेरे देश में आओ नव-वर्ष ! इस तरह कुछ ,
कि बयार ऐसी बहे अबके ,
कि देश की धरती सोना उगले ,
अकाल की काली छाया हटे
रोज उत्सवों की धूम मचे ,
सजे रोज दिवाली के दिए ,
मन हो फाल्गुनी सबके ,
बुने रंगीन सपने ,
आओ नव-वर्ष !
इस तरह तुम होले-होले ,
कि सूखी पथराई आँखों में ,
जीवन की किरण जगे ,
आओ नववर्ष !
इस तरह तुम आओ नववर्ष !

-०-
प्रज्ञा गुप्ता
बाँसवाड़ा, (राजस्थान)

-०-
***
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