नई आशा
(कविता)
नए साल के संकल्पों से,शुभ नवजोत जलाएँ।
स्वागत बीस-बीस का करके
प्रेम ध्वजा लहराए।
गंगा-जमुनी अपनी संस्कृति
फिर क्यूँ तेरा-मेरा,
इंसा होकर इंसानियत न
करे रे मन मे फेरा।
चलो भेद यह दूर भगाएं,
नव संसार रचाएं।
नए साल के संकल्पों से,,,
नए तंत्र हों नईविधाएं,
नए दौर में नई फिजाएं
तू,मैं हम हो जाएं
वर्ग भेद और जाति भेद से,
खुद को दूर भगाएं
नए साल के संकल्पों से,,,,
नई समाज और नई हो शिक्षा
नया बनाए रस्ता
नए रास्तों पर चलकर
मंजिल पाएं आहिस्ता।
एक-एक फिर फूल को चुनकर
गुलदस्ता बनवाएं।
नये साल के संकल्पों से,,,,
-०-
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