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Sunday, 8 March 2020

नारी तुम माँ हो (कविता) - डॉ. कान्ति लाल यादव


नारी तुम माँ हो
(कविता)
नारी तुम माँ हो, बहिन हो,पत्नी हो, बेटी हो,
कई अलग रूपों से गुजर कर भी तुम्हे किसने अबला बना दिया ?
कन्या का पूजन करवा कर भी तुम्हें कई बार गोद में ही मरवा दिया।
हुस्न की जाल में तुम्हारी अस्मत को भी लूट लिया।
आदमी ने मकान बनाया औरत ने उसे घर दिया।
मकान को घर बनाने वाली का श्रेय आदमी ने छीन लिया।
हर दास्तान से गुजरी हो तुम ।
दहेज में भी जली हो तुम।
आदमी के पापाचार में
अपनी अस्मत से भी तली हो तुम।
गहनों के जाल में बंधी हो तुम।
घूँघट की आड़ में छुपाई गई हो तुम।
बलात्कारी भेड़ियों से हर बार लूटी हो तुम।
भेड़ियों के छल में हवस की शिकार हुई हो तुम।
अपनी आबरू को बचाने में कई बार मरी हो तुम।
गहनों की जाल में फसाई गई हो तुम।
उम्मीदों के चिरागों में पली हो तुम।
सुंदरता के द्वेष में भी बदनाम हुई हो तुम।
खूब सुरती की मुस्कान में भी मुरजाई हो तुम।
समाज की जंजीरों से हरबार गुलाम रही हो तुम।
पुरुष की विकृति से मसली गई हो तुम
तो कभी भयानक चोट से कुचली गई हो तुम।
निष्काम सेवा-भक्ति से सदा बंधी हो तुम।
तुम हंसी हो, रुदन हो,दर्द के आँसू पीकर कई बार सोई हो तुम।
बच्ची से बेटी बन बाप-भाई के घर, जवानी में पति के सायें में और बूढ़ी होकर बेटे के घर में ठहरी हो तुम।
ठहर कर भी ठिकाने की महोताज बनी हो तुम।
रिश्तों के रास्तों में लटकी हो तुम।
सब कुछ कर भी कुछ नही कह रही हो तुम।
अपनी संतानों को ही सब कुछ समझती हो तुम।
अपने को तिल-तिल जलाकर कर्म का हवन होगई हो तुम।
धर्म की पालक,कर्म की पावन,समाज की सीढ़ी हो तुम।
हर युग की अजब-अबूझ ,
अधूरी पहेली हो तुम।
आज नारी,नारी से बटी हो तुम।
इसीलिए अपने वजूद से कटी हो तुम।
-०-
डॉ. कान्ति लाल यादव
(सामाजिक कार्यकर्ता)
-०-

***
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