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Sunday, 8 March 2020

औरतें (कविता) - डा. नीना छिब्बर

औरतें
(कविता)
1. औरतें
दिखती कोमल
रहती हैं तैयार
सहती दर्द
सहज।।
2.. औरतें
. सोच समझ
निभाती हैं रिश्ते
रक्षासूत्र से
बाँध ।।
3. औरतें
उकेरेती चित्र
खोलती भीतरी बंध
रंग देती
वर्तमान ।।
4. औरतें
नमकीन हँसी
जादू की पुड़िया
घुल जाए
खुशगवार।।
5. औरतें
माँगती दुआएँ
बांधती ड़ोरे गंड़े
भूखे जपे
हरिनाम ।।
6. औरतें
बहुत बोलती
सन्नाटे से लड़ती
खुद बनती
महान ।।
7. . औरतें
सीख लेती
भूखे रह दिखना
संतुष्टि की
दुकान ।।
8 . औरतें
वज्र मूर्ख
खुद ही देती
अपना सुख
दान ।।
9 औरतें
हीर लैला
प्रेमपगी मधुर सी
झूमता हुआ
मधुमास ।।
10. औरतें
पकाती हैं
चूल्हे पर अरमान
छौंकती सुगंधित
एहसास।।
11. औरतें
शीतलहर सी
फैलाए जब पंख
गर्म हवाएँ
छू ।।
12. औरतें
नन्हीं कलियाँ
खिल खिल बढ़े।
दूसरा उपवन
गुलजार ।।
13. औरतें
नटनी सी
रस्सी पर चले
दिल दिमाग।
संतुलित ।।
14. औरतें
पढ़े ग्रंथ
ढूंढे कुछ हल
जिंदगी तबभी
सवाल ।।
15. औरतें
जगमग जुगनू
दिखलाए जो राह
नन्ही कोशिश
शाबाश ।।
16. औरतें
जानबूझ कर
बन जाए नासमझ
सहलाए उनका
अहम ।।
17. औरतें
रंगीली दिखे
इंद्र्धनुष सी खिले
आकाश उसका
परिवार ।।।
18. औरतें
खुली किताब
शब्द शब्द कहानी
पढ़ इसे
भरतार ।।
19. औरतें
जब पकड़े
मनमीत का हाथ
सौंपे तब
सर्वस्व ।।
20., औरतें
अबूझ पहेली
दोनों आँखें सुनाती
अलग कहानी
अनजानी ।।
-०-
डा. नीना छिब्बर
जोधपुर(राजस्थान)

-०-

***
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