अनुबंध
(कविता)
जीवन पर्यन्त तक अनुबंध
सुख दुःख की अनुभूति संग
कभी शिकवा न शिकायत
तुम नील वर्ण हम गौर
जौड़ी जैसे चांद चकोर
अनुराग भरा घट लिए
उड़ेलते रहते हर पल
अनुभूति सुखद एहसास से
सराबोर हो कट रही जिन्दगी
कब सुबह हुई कब सांझ
पता ही नहीं चला अबतक
ज्यों इबारत लिखी गई हो
दीवारों पर दस्तावेज की तरह
जिसे आकर कोई पढ़ लेगा
करेगा याद हमारे अनुराग के
जीवन पर्यन्त तक अनुबंध
सुख दुःख की अनुभूति संग
-०-
पता:
अर्विना
-०-
वाह! हार्दिक बधाई है आदणीय
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