हिदायत
(लघुकथा)
सुमन ने यौवन की दहलीज़ पर कदम रखा ही था कि हिदायतें मिलनी शुरू हो गई थी। आज उसका सोलहवां जन्मदिन दिन था। मम्मी के साथ खरीदी हुई प्यारी सी गाउन पहनी थी । गुलाबी-सी रेशमी आभा से गाल भी गुलाबी रंगत लिये लगने लगे थे । सहेलियां आ गई थी ।मां हिदायत पर हिदायतें दे रही थी .......
"फोन कर देना।"
"ज्यादा देर मत लगाना।"
"जल्दी आ जाना।"
"नानवेज मत खाना।"
"मंदिर में हाथ जरूर जोड़ ना प्रसाद जरूर चढ़ा देना।"
"अरे मां बस भी करो कितनी हिदायतें दोगी अभी आती हूँ ना ! बाय मां...."
कुछ समय बाद फोन बजा।
"आपकी बेटी अस्पताल में हे बहुत सीरियस है जल्दी आ जाइये।"
गिरते-पड़ते हास्पीटल पहूंची। बेटी आखिरी सांसे गिन रही थी। मां उस पर झुकी बेटी कुछ कहना चाह रही थी। "माँ इतना कुछ बताया ये तो नहीं बताया तुमने।"
बेटी ने हाथ और सांस दोनो छोड़ दी।
पुलिस रेप का केस बता रही थी।
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पता
अपर्णा गुप्ता
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
-०-
बहुत मार्मिक कथा। हर मां के मन के डर को व्यक्त किया है आपने अपनी कथा में।
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