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Friday, 20 December 2019

लोकल ट्रेन (कविता) - छगनराज राव

लोकल ट्रेन
(कविता)
महानगरों की शान है
अपडाउन की जान है
मिनट मिनट में चलने वाली
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

भीड़ भाड़ धकम धक्का
कभी चौका कभी छक्का
लोगो की इस रेलमपेल में
होते देखो हक्का बक्का
रखते सब हथेली पे जान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

ट्रैन में कब चढ़े पता न चला
ट्रैन से कब उतरे पता न चला
उतरना था हमको तो गोरेगांव
पर उतरे है अँधेरी पता न चला
अच्छे अच्छो का भटका ध्यान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है

सेकंड की जगह फर्स्ट क्लास में
लेडीज डिब्बा आ गया पास में
मैं हड़बड़ी में चढ़ गया फटाक से
टी टी बाबू खड़ा था इसी आस में
देखो पकड़ लिया मेरा कान है
फिर भी लोकल ट्रेन महान है

सब लोग अपनी मस्ती में
रहते इतने कौनसी बस्ती में
फेरी वाले फुटकर सामग्री को
बेचे महंगी तो कभी सस्ती में
ये चलती फिरती दुकान है
हाँ ये लोकल ट्रेन महान है
-०-
पता
छगनराज राव
जोधपुर (राजस्थान)
-०-

***
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