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Friday 20 December 2019

कहीं धूप कहीं छाया (कविता) - अलका 'सोनी'

◆ कहीं धूप कहीं छाया◆
(कविता)
खुशियों को कैद कभी
कहाँ कोई कर पाया है ।
महलों के संग इसने
निर्धन का घर भी सजाया है।।

वरदान बन ये बस्ती में
निश्छल मुस्काती है।
जब बच्चों के मुख पर
मीठी सी हंसी आती है।

ढूंढ ही लेता है बचपन
रद्दी में भी अपने खिलौने।
वहीं भवनों में पल भर में
रद्दी बन जाते, नए खिलौने।

कब टूटेगी विषमता की
ये मजबूत होती दीवारें?
छोटी-छोटी बातों के लिए
कब तक ये मन को मारे ?

दोष है क्या इनमें इनका
जन्म निर्धनता में पाया?
इस जग की रीत यही है
कहीं धूप, कहीं छाया !!-०-
अलका 'सोनी'
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)

-०-

***
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1 comment:

  1. रचना को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद.....💐

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