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Saturday, 14 March 2020

समझोता (कविता) - श्रीमती कमलेश शर्मा

“समझोता”
(कविता)
“समझोता दिल का दिमाग़ से “
दिल से बात की,
सोचा दिमाग़ से।
दोनो की दोस्ती करा,
मिली अपने आप से।
दिल थोड़ा शर्माया,
दिमाग़ सकुचाया,
धीरे धीरे दोनो ने,
अपना अपना हाथ आगे बढ़ाया।
हाथ मिलाया।
पूछा इक दूजे से,
कैसे हैं आप?
दोनो ही थे,मिलने को बेताब।
दिमाग़ थोड़ा मुस्कुराया,
दिल बोला,”मुस्कुरा क्यों रहे हो?
अंदर ही अंदर किस चिंता से घिरे हो?
दिमाग़ ने कहा,
एक बात कहूँ? ध्यान दोगे ?
अपनी ही हाँकोगे या मुझसे भी कुछ काम लोगे?
मैंने कहा,”दोनो एक घर में रहते हो,
फिर क्यों दूरियाँ हैं?
मिल कर नहीं रह सकते?
क्या मजबूरियाँ हैं।
क्यों जुदा जुदा हो?
एक दूजे से ख़फ़ा हो।
सिर्फ़ एक फ़ुट की दूरी है,
वो भी नहीं पाटते हो,
कुछ सोचते समझते नहीं,
अपनी अपनी हाँकते हो।
दोनो को पास बैठाया,
प्यार से समझाया,
समझोता कराया।
अपने अपने शब्दों में,
भावनाओं के रंग भर दो,
एक दूजे को सम्पूर्ण कर दो।
दोनो का महत्व बढ़ेगा,
दिल माँनेगा,सुनेगा।
दिमाग़ भी सक्रिय होने से
पीछे नहीं हटेगा।
दोनो की दूरी का रास्ता ,
पलों में पटेगा।
कुछ दिल की सुनो,
कुछ दिमाग़ लगा लो,
वरना दिल ओर दिमाग़ की दूरियाँ
बढ़ती चली जाएगी।
ये एक फ़ुट की दूरी तय करने में,
उम्र बीत जाएगी।
-०-
पता
श्रीमती कमलेश शर्मा
जयपुर (राजस्थान)
-0-


***
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