दौड़ निरन्तर
(ग़ज़ल)
दौड़ निरन्तर जारी है
अपनों की बीमारी है
खींचेंगे ये टाँग वक्त पर
इनकी ही हकदारी है
मन्दिर में जो लूट हुई थी
हिस्सेदार पुजारी है
दुनिया का जादू ऐसा है
दुविधा में नर नारी है
दीवाली पर ग़म में डूबा
हारा हुआ जुआरी है
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