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Monday, 18 November 2019

सांस (व्यंग्य कविता) - ओम प्रकाश कताला

सांस
(व्यंग्य कविता) 
घर की लिस्ट देखकर, सांस लेने में दिक्कत आई ।
हाथ में झाड़ू थमाई शीशा, दरवाजा,जाली साफ कराई।
देखो सांस लेने में दिक्कत आई, कौन समझाए ? सबको भाई।
दो दिन की छुट्टियों में क्या दिक्कत आई।
हाथ में बेलन, चेहरे की भंगिमा अलग नजर आई ।
सहमा दुबका मन ,खुश हुआ,
उस बेचारी को मुझ पर दया आई।
घर की लिस्ट देखकर सांस लेने में दिक्कत आई।
कौन समझाए? साहब को यह छुट्टियां हमको ना भाइ।
दोष लगाया,लगाएंगे आप पर, हमारी सुनी ना एक।
मैडम का पक्ष लेकर करी तनहाई,
घर की लिस्ट देखकर सांस लेने में दिक्कत आई।
'कताला' तेरे समझ में अब आई,

संदेश बैंक का देखकर वह घबराई।
पालक मेथी के पकोड़े साथ चटनी खिलाई।
दोष देना बंद करो 'मैं' ही पगलाई।
देख चेहरा उस बेचारी का काम बंटाने में अब शर्म ना आई।
घर की लिस्ट देखकर सांस लेने में अब दिक्कत ना आई,
अब दिक्कत ना आई......।
-०-
ओम प्रकाश कताला
सिरसा (हरियाणा)
-०-

***
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