मीत मेरे
(कविता)
सूर्य की कड़ी धूप में, तुम छांव जैसे हो। कंकड़ भरी राहों में, तुम कोमल पांव जैसे हो। जब दुख की बदरा छाई, काली घटा उभर आई । तब तुम बन मीत मेरे, तुमने संग में नीर बहाई। दिया मुझको इतना दिलासा, टूटे ना मन की कोई आशा । जीवन का कैसा ये परिभाषा यह जीवन है एक पासा । तू ने सुख-दुख बाटे साथ मेरे, तेरे संग जीवन की डोर नहीं। अंत करूं या प्रारम्भ करूं, तेरा कोई ओर-छोर नहीं । अमावस की वो चांद भी, संग तेरे पूर्णिमा जैसी लगती है । बागों के मुरझाए फूल भी, देख तुझे खुशबू बिखेरती है। संग तेरे नहीं जीना - मरना, फिर भी तेरा साथ भाता है। देख तुझे ये कैसे रोती नैना ? खुशी में गम को भूल जाता है। मेरे मन को बहुत भाता है तेरा, मेरा हौसला बढ़ाना । हार मिले या जीत मिले, सबको तेरे जैसा मीत मिले।
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पता -
जयपूर्णा विश्वकर्मा
गढ़वा, झारखण्ड
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बहुत सुंदर रचना
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