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Monday 18 November 2019

मीत मेरे (कविता) - जयपूर्णा विश्वकर्मा

मीत मेरे
(कविता)
सूर्य की कड़ी धूप में, 
तुम छांव  जैसे  हो। 
कंकड़ भरी राहों में, 
तुम कोमल पांव जैसे हो। 
          जब दुख की बदरा छाई,
          काली घटा उभर आई ।
          तब तुम बन मीत मेरे,
          तुमने संग में नीर बहाई।
दिया मुझको इतना दिलासा, 
टूटे ना मन की कोई आशा ।
जीवन का कैसा ये परिभाषा 
यह जीवन है एक पासा । 
         तू ने सुख-दुख बाटे साथ मेरे,
         तेरे संग जीवन की डोर नहीं।
         अंत करूं या प्रारम्भ करूं,
         तेरा कोई ओर-छोर नहीं ।
अमावस की वो चांद भी, 
संग तेरे पूर्णिमा जैसी लगती है ।
बागों के मुरझाए फूल भी, 
देख तुझे खुशबू बिखेरती है।
         संग तेरे नहीं जीना - मरना,
         फिर भी तेरा साथ भाता है।
         देख तुझे ये कैसे रोती नैना ?
         खुशी में गम को भूल जाता है।
मेरे मन को बहुत भाता है 
तेरा, मेरा हौसला बढ़ाना ।
हार मिले या जीत मिले, 
सबको तेरे जैसा मीत मिले।
-०-
पता - 
जयपूर्णा विश्वकर्मा
गढ़वा, झारखण्ड 
-०-

***
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