*मां भारती का सम्मान*
(कविता)
नया जोश है, है नई उमंग,
देश प्रेम का प्रेम के ढंग।
गा रही है कोयल विहंग,
नाचे मोर कबूतर संग।।
धरती अपनी भारती,
ऋषि मुनियों की आरती।
धर्म यहां का मानव जाति,
नारी गीत प्रेम के गाती।।
रहते हैं सब अनेक में एक,
चलते है नित प्रेम को देख।
ना कोई लिप्सा ना कोई खेद,
मां भारती है सबकी एक।।
आओ मिलकर सब हाथ बढ़ाएं,
भारती को भारतगुरू से मिलाएं।
मिलकर हम सब गाएं गान,
मां भारती को दिलाएं अपनी पहचान।।
वंदन है उस कवि वाणी को,
करती है जो पवित्र बानी को।
मां भारती का करे जो यशगान,
आओ सब करे उसका सम्मान।।-०-
पता-
नया जोश है, है नई उमंग,
देश प्रेम का प्रेम के ढंग।
गा रही है कोयल विहंग,
नाचे मोर कबूतर संग।।
धरती अपनी भारती,
ऋषि मुनियों की आरती।
धर्म यहां का मानव जाति,
नारी गीत प्रेम के गाती।।
रहते हैं सब अनेक में एक,
चलते है नित प्रेम को देख।
ना कोई लिप्सा ना कोई खेद,
मां भारती है सबकी एक।।
आओ मिलकर सब हाथ बढ़ाएं,
भारती को भारतगुरू से मिलाएं।
मिलकर हम सब गाएं गान,
मां भारती को दिलाएं अपनी पहचान।।
वंदन है उस कवि वाणी को,
करती है जो पवित्र बानी को।
मां भारती का करे जो यशगान,
आओ सब करे उसका सम्मान।।-०-
पता-
बहुत बहुत आभार आदरणीय जी।
ReplyDeleteआपकी वेबसाइट पर मेरी रचना को स्थान देने के लिए।