(लघुकथा)
सभी समाचार चैनलों के फोन खटखटाए उदय प्रताप फाइनेंस कंपनी के डायरेक्टर तीरथसिंह केडिया ने।
"देश के चौथे नंबर के बिजनेसमैन श्री उदय प्रताप माहेश्वरी की शव यात्रा है उन की कोठी से मुक्ति धाम तक पूरी कवरेज चाहिए।"
फोन रखते ही तीरथ सिंह के दिमाग में बिजली सी कौंधी। चींटी की चाल से चलती शव यात्रा के रास्ते में जितनी भी दुकानें हैं उन पर भी तो कैमरा फोकस होगा ।यह तो मुफ्त की पब्लिसिटी है दुकानों की । चालीस साल उदय प्रताप माहेश्वरी के कोष को विभिन्न स्रोतों से खूब भरा है तीरथ सिंह ने और उसकी इस बात का लोहा उदय प्रताप महेश्वरी भी मानते थे। लेकिन वह यह काम किसी दूसरे को नहीं सौंपेगा। उसने खुद ही सभी दुकानों के मालिकों को मिलने आने को कहा। उदय प्रताप माहेश्वरी के रुतबेदार सेक्रेटरी तीरथ सिंह का कहा कौन डालता? सब तीरथ सिंह के बंगले पर आपातकालीन मीटिंग में शामिल हुए। दुकानों की पब्लिसिटी के लिए बड़ी रकम वसूल कर तीरथ सिंह शव यात्रा की संपन्न हो चुकी तैयारी वाले हॉल में पहुँचा
फूलों से पैरों से गले तक ढके उदय प्रताप का चेहरा देख तीरथसिंह की आँखे जेब में रखे नोटों के बोझ से झुक गईं। झुकी आँखों ने उदयप्रताप माहेश्वरी के किंचित मुस्कुराते चेहरे को देखा । उन्हें लगा मानो वे कह रहे हैं
"वाह तीरथ सिंह मेरी शव यात्रा का भी व्यापार कर डाला तुमने।"
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पैसा कमाने के लिए इंसान किसी भी हद तक जा सकता है , यही लघुकथा व्यापार में सटीक ढंग से प्रस्तुत करने में बहनजी सफल हुई हैं । बधाइयाँ !
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