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Friday, 6 December 2019

जाग जरा तू (कविता) - नरेन्द्र श्रीवास्तव

जाग जरा तू
(कविता)

दिल में ऐसी आग जला तू।
सोया मत रह जाग जरा तू।।

सारे शिकवे,गिले भुलाकर।
आगे आ के हाथ बढ़ा तू।।

आँसू जो ख़ुद पीते रहते।
अपनेपन का स्वाद चखा तू।।

डगर अकेले सुगम नहीं है।
साथी बनकर साथ निभा तू।।
सुख,वैभव पायेंगे सब मिल।
प्रेम,शांति का पाठ पढ़ा तू।।
-०-
संपर्क 
नरेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश)  
-०-

***
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