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Friday, 6 December 2019

पेड पौधे प्रकृति का श्रृंगार (आलेख) - सुनील कुमार माथुर

पेड पौधे प्रकृति का श्रृंगार
(आलेख)
पेड पौधे प्रकृति का श्रृंगार है । एक नारी जब गहने पहनती है तब उसके श्रृंगार में चार चाॅद लग जाते है और उसका सौन्दर्य फिर हर किसी को लुभाता है ठीक उसी प्रकार धरती पर उगे हरे भरे वृक्ष धरती के आभूषण है जो उसके सौन्दर्य में चार चाॅद लगाते है । मगर आज का इंसान अपने स्वार्थ के कारण और विकास के नाम पर हरे भरे वृक्षों को काट रहा है जो इस धरती माता के साथ सरासर अन्याय है । हम प्रकृति के साथ जुडकर ही स्वस्थ व निरोग रह सकते हैं ।
साहित्यकार एवं कवि राजेन्द्र प्रसाद जोशी ने अपने लेख पर्यावरण और मानव व्यवहार में स्पष्ट कहा है कि मनुष्य पर्यावरण से घिरा है , वह न केवल उसमें रहता है अपितु उसे प्रभावित करता है और प्रभावित भी होता है । पर्यावरण के विकृत होने के परिणाम स्वरूप कहीं सूखा , कहीं अकाल , भूकम्प , अतिवृष्टि , तूफान , भूस्खलन जैसी कोई त्रासदी जब सामने आती है तो हम सहसा चौंक उठते है । पहले कभी ऐसा होता था तो हम उसे दैवीय प्रकोप कहकर संतोष कर लेते थे मगर हकीकत यह है कि पर्यावरण असंतुलन के कारण इस तरह की घटनाएं घटित होती है ।
जोशी लिखते है कि मानवीय व्यवहार और पर्यावरण का गहरा संबंध है । मनुष्य ने भूमि , जल , वायु और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग किया है जिसके प्रभाव उसके अतिरिक्त पेड पौधों , पशु पक्षियों तथा अन्य जीवधारियों पर पडने लगा है । औधोगिक इकाइयों के अपशिष्ट, धूल , रासायनिक प्रदार्थो, गैस , धुआं, विकिरणो ने हवा पानी को बुरी तरह से दूषित कर दिया है जिसके परिणाम स्वरूप मनुष्य शारीरिक रोगों के साथ ही साथ मानसिक रोगों का शिकार होता जा रहा है । प्रकृति का श्रृंगार जो हमें प्रसन्न रखता है । आत्मा को सहलाता है । हमने उतार कर रख दिया है । अपने ही हाथों रौंद दिया है । अतः अपने स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण का निरापद होना नितान्त आवश्यक है । प्रकृति के साथ जुडकर ही स्वस्थ व निरोग रह सकते हैं । इतना ही नहीं प्रकृति के साथ जुडकर ही सारी समस्याओं से निजात पाना सम्भव है । मानवीय व्यवहार में यथोचित परिवर्तन के द्धारा पर्यावरण को सुरक्षित रखकर सुखी रह सकते हैं
-०-
सुनील कुमार माथुर ©®
जोधपुर (राजस्थान)







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1 comment:

  1. दिन तपे तक
    वह काटत रहा,काटता रहा
    पेड़
    फिर छाव की तलाश में
    वह ढूढ़ता रहा ढूढ़ता रहा
    पेड़
    फिर

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