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Friday, 10 January 2020

मिल जाएगा (ग़ज़ल) - सत्यम भारती

मिल जाएगा
(ग़ज़ल)
उम्मीद है नासूर कोई नया मिल जाएगा,
जिसे देखो वो इश्क़ का मारा मिल जाएगा ।

जर्द पत्ते की जगह आते नव-कोंपल निकल,
तुम नहीं तो कोई दूसरा मिल जाएगा ।

थक कर ना बैठ तू , न अब आंसू बहा,
वक़्त की तामील कर रास्ता मिल जाएगा ।

कमज़र्फ तूफानों से माँझी कब है डरता ?
तुम हो तो किश्ती को किनारा मिल जाएगा ।

साध न पाता सूर-ताल, न गाता राग-मल्हार,
तू जो छत पे आये तो काफ़िया मिल जाएगा ।

पैसे बहुत तिजोरी में पर सुकूं नहीं हवेली में,
झुग्गियों में परिंदा मुस्कुराता मिल जाएगा ।

जम्हूरियत की गिरानी में अब किसानी कौन करे?
खेतों में गाता पपीहा मर्सिया मिल जाएगा ।

उनके ही चंदे से चलता सर्कस लोकतंत्र का,
आँकड़ों में सेठ धन्ना दीवाला मिल जाएगा ।
-०-
पता-
सत्यम भारती
नई दिल्ली
-०-

***
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