हूं खुशकिस्मत, अध्यापक हूं..
(कविता)
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं ,
हैं कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन ।
अज्ञान लोक यह जीवन है,
इसमें अंधियारा रचा बसा।
है परमपिता का परमाशीष ,
जो उससे लड़ने मुझे चुना।
आदर्श बनाकर ज्ञान के पथ को,
मैं जगमग करने आया हूं।
ज्ञान की ज्योति से मन के ,
मैं तम को भेदन आया हूं ।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
पग-पग में हो कठिनाई शूल ,
भले मार्ग मिले या ना भी मिले।
चलना मुझको इस पथ पर है,
भले साथ किसी का मिले ना मिले।
नए रस्तों की पहचान बना ,
मैं डगर बनाने आया हूं।
उजड़ी हुई बस्ती को फिर से,
मैं नगर बनाने आया हूं ।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
कल यह भी हो कि मैं भी ना होउं,
रहे बाग बगीचे खिले हुए।
ज्ञान के उजियारों से हो,
अज्ञान के दम भी घुटे हुए ।
और खुशबू मेरी हर आंगन से,
महके और उठती भी रहे ।
इस माटी में मिल कर मैं ,
हर दिल बस जाने आया हूं।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन ।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
है परमपिता का परमाशीष ,
जो उससे लड़ने मुझे चुना।
आदर्श बनाकर ज्ञान के पथ को,
मैं जगमग करने आया हूं।
ज्ञान की ज्योति से मन के ,
मैं तम को भेदन आया हूं ।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
पग-पग में हो कठिनाई शूल ,
भले मार्ग मिले या ना भी मिले।
चलना मुझको इस पथ पर है,
भले साथ किसी का मिले ना मिले।
नए रस्तों की पहचान बना ,
मैं डगर बनाने आया हूं।
उजड़ी हुई बस्ती को फिर से,
मैं नगर बनाने आया हूं ।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
कल यह भी हो कि मैं भी ना होउं,
रहे बाग बगीचे खिले हुए।
ज्ञान के उजियारों से हो,
अज्ञान के दम भी घुटे हुए ।
और खुशबू मेरी हर आंगन से,
महके और उठती भी रहे ।
इस माटी में मिल कर मैं ,
हर दिल बस जाने आया हूं।
हूं खुशकिस्मत अध्यापक हूं ,
है कार्यक्षेत्र मेरा अध्यापन ।
ज्ञान की अलख जगाने को ही,
है मेरा सब समराथन।
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