जिन्हें यह ज़िन्दगी सौंपी
(ग़ज़ल)
बहुत दिन हो गये आँखों में वो मंज़र नहीं आते,
तुम्हारी याद के चेहरे हमारे घर नहीं आते|
हुआ है हाल ये अपना जो तुमसे दूर हो करके ,
लिए अब हाथ में दुश्मन कभी खंज़र नहीं आते |
समय के साथ मिलकर काम करना बुद्धिमानी है,
हमेशा जिंदगी में एक से अवसर नहीं आते|
तुम्हारे प्यार के खत को लगा दी है नज़र किसने ,
बहुत दिन से कबूतर अब हमारे घर नहीं आते|
हुए हमदर्द दुश्मन भी जुदाई में जरा देखो,
तुम्हारे बाद छत पर अब कभी पत्थर नहीं आते|
बहुत है दूर मंजिल चल रहे हैं हम अकेले ही,
सदायें सुन के भी नज़दीक अब रहबर नहीं आते |
न जाने क्या खता कर दी है हमने प्यार में ‘गुलशन’,
जिन्हें यह ज़िन्दगी सौंपी वही दिलवर नहीं आते ||
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