पन्ने भर नहीं सकते
(ग़ज़ल)
झरे हों फूल गर पहले,तो फिर से झर नहीं सकते
मुहब्बत डालियों से फिर,कभी वो कर नहीं सकते
कड़ी हो धूप सर पर तो,परिंदे हाँफ जाते हैं
तपी धरती पे भी वो पाँव,अपने धर नहीं सकते
भरा हो आँसुओं से गर,कहीं भी आग का दरिया
बनाकर मोम की कश्ती,कभी तुम तर नहीं सकते
भले ही प्यार की मेरी, वो छोटी सी कहानी हो
लिखो सदियों तलक चाहे,ये पन्ने भर नहीं सकते
उड़ाने हों अगर लम्बी,तो दम फिर हौंसलों में हो
भले तूफाँ कई आयें, कतर वो पर नहीं सकते
इरादे हों अगर पक्के,तो मत डर देखने से तू
बड़े कितने भी सपने हों,कभी वो मर नहीं सकते
-०-
डॉ० भावना कुँअर
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
सिडनी (ऑस्ट्रेलिया)
No comments:
Post a Comment