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Monday, 20 January 2020

आँसू (कविता) - दुल्कान्ती समरसिंह (श्रीलंका)


आँसू
(कविता)
आँखें न देखते हैं ,आँसू
आँखों से गिरते हैं आँसू ।
रातों भर आँखों में रह रह कर,
दो आँखों भीगते हैं आँसू ।

अतीत से आती हैं आँसू,
अतीत को जाती हैं आँसू ।
जब इच्छायें टूट गए तो,
तब गुप्त रूप में हैं आँसू ।।

जन्म से शुरू हुई आँसू ,
देखा या न देखा,हैं आँसू।
जाति भेद न जानते हैं,
अनंत , गर्मी आँसू ।।

स्वप्नों की तरह ही हैं आँसू,
कितनी हैं,नहीं आँसू ।
मुस्कुराहटें के पीछे हैं,
कोई भी ना देखा हैं वो आँसू ।।।

-०-
दुल्कान्ती समरसिंह
कलुतर, श्रीलंका

-०-

***
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