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Thursday, 6 February 2020

हौले -हौले बसंत आ रहा है (कविता) - मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'


हौले -हौले बसंत आ रहा है
(कविता)
कायनात का जर्रा-जर्रा,झूमता नजर आ रहा है।
खुशियां मनाओ हौले-हौले बसंत आ रहा है।।

मौसम की करवट से, कली-कली खिलने लगी ।
ह्रदय - छुअन को आतुर, बसन्त आ रहा है।।

बाग-बगीचों की अदा ,निखरी-निखरी सी है ।
फूलों पे मंडराते भंवरों के संग, बसंत आ रहा है।।

मस्ताने मौसम में,सम्मोहन सा नजर आता है ।
उमंग-उल्हास-फाग के संग, बसंत आ रहा है।।

कली-कली खिल उठती है, चंग-रंग के संग ।
तन-मन को तरंगित करने , बसंत आ रहा है ।।

पीली-पीली सरसों ,पीले - पीले ही परिधान ।
कुदरत को सुरम्य करता , बसंत आ रहा है।।

सृजनशील - पर्यावरण ,बसंत की सुषमा बन ।
माँ-सरस्वती का प्रतीक बनने,बसन्त आ रहा है।।
-०-
मईनुदीन कोहरी 'नाचीज'
मोहल्ला कोहरियांन, बीकानेर

-०-

***
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