पोपट
(लघुकथा)
बारिश के मौसम के चलते पोपट आज भी नहीं आया।ऐसे में वह आता तो कैसे? पोपट एक याचक,एक भिखारी जो हाथ फैलाकर लोगों के सामने अपना हाथ उठा देता। एक छोटी दरी उसके नीचे बिछी रहती जिस पर थोड़ी रेजगारी और कुछ रुपये रखे रहते। बदकिस्मती से उसके दोनों पैर घुटनों के ऊपर से नहीं थे।दुर्घटना में कटे या काटे गए, पता नहीं।
रोजाना के मेरे प्रातःकालीन भ्रमण के दौरान पोपट मुझे दरवाजे के पास मिल जाता। हाथ उठाकर सलाम करता और मैं भी मुसकरा कर हाथ उठा देता।आंखों ही आंखों में एक अनबोला रिश्ता बन गया था।
चार दिन बाद मैंने पोपट को अपनी जगह बैठे देखा तो खुशी हुई। हमेशा की तरह दुआ सलाम हुई।आज मुझसे रहा नहीं गया और मैं इतने दिन नहीं आने का कारण पूछा।उसने न आने की वजह बारिश बताई।
उत्सुकतावश मैंने फिर पूछ लिया," तम रोजाना यहां पर कैसे आते हो?"
उसकी आंखों में आंसू आ गए और नम आंखों से कहा,"हमारे कुछ लोगों का सरदार रोजाना हमें टेम्पो में बिठाकर लाता है और शहर के चौराहों, अस्पतालों, बाग बगीचों के बाहर छोड़ जाता है।शाम के बाद अपने अड्डे पर ले आता है।सारी कमाई वह लेता है और हमारे पापी पेट को रूखा सूखा मिल जाता है।
मेरा मुंह खुला का खुला रह गया। जैसे एक बिजली कौंधी।
हाथ जोड़कर मैंने आसमान की तरफ देखा और परमात्मा से कहा- कैसे हैं ये लोग जो निशक्तजनों का खून पी पी कर सशक्त बनते चले जा रहे हैं।
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अच्छी मारक क्षमता वाली लघु कथा। शीर्षक यदि खटमल होता तो....
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