* बेटियाँ *
(कविता)
कोयल की कूक कभी
मयूरों की नर्तन होती
हैं बेटियां
रेशमी डोर सी लिपटी
मीठी सी उलझन होती
हैं बेटियां
खुद आगे बढ़ती जाती
कमजोर कहां होती
हैं बेटियां
घुंघरू की रुनझुन सी
बजकर घर को खनकाती
हैं बेटियां
माता-पिता के संसार को
महकाती, हरसिंगार- सी होती
हैं बेटियां
लाड़ भी करती ,ज़िद पर भी आती
मनाओ गर तो मान जाती
हैं बेटियां।
बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
मयूरों की नर्तन होती
हैं बेटियां
रेशमी डोर सी लिपटी
मीठी सी उलझन होती
हैं बेटियां
खुद आगे बढ़ती जाती
कमजोर कहां होती
हैं बेटियां
घुंघरू की रुनझुन सी
बजकर घर को खनकाती
हैं बेटियां
माता-पिता के संसार को
महकाती, हरसिंगार- सी होती
हैं बेटियां
लाड़ भी करती ,ज़िद पर भी आती
मनाओ गर तो मान जाती
हैं बेटियां।
-०-
अलका 'सोनी'बर्नपुर- मधुपुर (झारखंड)
-०-
रचना को प्रकाशित करने के लिए हार्दिक आभार आपका....💐💐
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