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Monday, 16 March 2020

बेचते हैं (कविता) - दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'

“बेचते हैं"
(कविता)
दामन में जिनके दाग हैं
वो सफेदी बेचते हैं
दवा बनाने वाले
मर्ज बेचते हैं
शराब बेचकर कोई
दूध खरीदता है
कोई दूध बेचकर
शराब खरीदता है
वो सवाल भेजकर
जवाब खरीदते हैं
चेहरा जिनका गमगीन है
वह खुशी बेचते हैं
अधर्म करने वाले
अब फूल बेचते हैं
प्यार के बदले बच्चे
मां-बाप को शूल बेचते हैं
साधु संत प्रवचन के बदले
अब दुर्बचन बेचते हैं
नेताजी सद्भावना भाईचारा
के बदले दंगा बेचते हैं
करते थे पहले जो चोरी
अब ताले बेचते हैं
दुनिया एक बाजार है यहां
हर कोई कुछ न कुछ बेचता है
खरीदना है आपको अगर
तो अच्छा ही खरीदी है
बेचना है आपको भी
तो अच्छाई बेचिए ,अच्छाई बेचिए
तो ऐसा है सब का जुनून
नहीं है कहीं भी सुकून
तो आइए बकौल गांधी जी
हम उनके आदर्शों को अपनाएं
न बुरा बोले न बुरा देखे ना बुरा सुने-०-
पता: 
दिनेश चंद्र प्रसाद 'दिनेश'
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल)
-०-


***
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