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Friday, 3 April 2020

अब जाग जाओ (कविता) - डॉ. शैल चन्द्रा

अब जाग जाओ
(कविता)
फुदकती चिड़िया देखकर आँगन सुनसान।
पूछती है सबसे कहाँ गया इंसान।
हो रही है वो बेहद हैरान।
ये क्या से क्या हो गया भगवान।
हमेशा भीड़ से घिरा रहना चाहता था कामयाब इंसान।
अब एकदम अकेले रह गया है चाहे वो बहुत धनवान।
कोरोना अस्त्र आया मारण यंत्र।
नहीं चल रहा उसके सामने कोई तंत्र।
भयानक मौत का तांडव करने वो आया।
सुनामी की लहर की तरह सबको डुबाया।
बचना है तो बच सको हे मानव।
वरना पल भर में लील जाएगा ये दानव।
सुरक्षा अपने हाथ में है कर लो।
जीवन को चाहो अपनी मुठ्ठी में भर लो।
मनुष्य में जिजीविषा है भारी।
हरा कर कोरोना को जीत रखेगा जारी।
घर पर रहो लोगों ,बाहर खतरा है।
दरवाजे पर सबके मौत का पहरा है।
नहीं जागे तो अब जाग जाओ।
हाथ धो कर पीछे पड़ कर कोरोना को भगाओ।
---
पता
 डॉ. शैल चन्द्रा
धमतरी (छत्तीसगढ़)

-०-

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