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Friday, 3 April 2020

शांति की सत्ता ! (कविता) - अशोक 'आनन'


शांति की सत्ता !
( कविता )
न कहीं दंगा , न कहीं फ़साद है ।
हर तरफ शांति की सत्ता आबाद है ।

देखा नहीं कभी ऐसा मरघटी सन्नाटा -
सभी बंद हैं घरों में , नहीं कोई आज़ाद है ।

लोग खिड़कियों से झांक रहे हैं कुछ ऐसे -
मानों द्वार की उन्हें नहीं कुछ याद है ।

दूरियां दिलों की जो पाटी थी आदमी ने -
नज़दीकियां आज वे हो गईं बर्बाद हैं ।

आदमी को शक़ की नज़र से देखता आदमी -
संकट में हर मां - बाप , संकट में औलाद है ।

सन्नाटा पसरा है हर गांव , गली , शहर में -
आदमी से आदमी का आज बंद संवाद है ।

वक़्त ही कुछ ऐसा ज़ालिम आज ये आया -
फ़िज़ूल उसके सामने आज हर विवाद है ।

पीड़ा आज यह सह रही है जो ये मानवता -
इस पीड़ा का कहीं नहीं कोई अनुवाद है ।

प्रभु की जो सेवा , की है जो आराधना -
उसी पूजा का समझ लो यह प्रसाद है ।

मिल - जुलकर सामना कर हम दिखाएंगे -
भारत विश्व में इसका एक अपवाद है ।
-०-
पता:
अशोक 'आनन'
शाजापुर (म.प्र.)

-०-




***
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