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Friday, 3 April 2020

अहसास (लघुकथा) - माधुरी शुक्ला

अहसास
(लघुकथा)
सुहानी सुबह से चिढ़ रही है। एक तो ऑफिस में मार्च आखिर के कारण बढ़ा हुआ काम और यहां घर में काम वाली बाई बिना बताए गायब। पड़ोस वाली शर्मा आंटी से दो बार पूछ आई है रमा बाई की कोई खबर है क्या? वह भी बता चुकीं नहीं है कोई खबर मैं भी परेशान हूं। अब सुहानी बड़बड़ा रही है इस बार इसकी छुट्टी कुछ ज्यादा ही हो गई पैसे काट लूंगी।

तभी बेल बजती है वह गेट खोलती है तो सामने रमा का बेटा था। क्या आज नहीं आएगी तेरी माँ? सुहानी ने गुस्से में पूछा। उसने डरते हुए कहा - पांच दिन नहीं आएगी। क्यों अब ऐसा क्या हो गया? सुहानी ने ऊंची आवाज़ में पूछा। मेरी नानी बीमार है उसका इलाज अब शहर में कराएंगे। मां उन्हें लेने गांव गई है। रमा के बेटे की बात सुन सुहानी को याद आया परसों मां का फोन आया था - दादी बीमार है और रोज तुझे याद करती हैं आकर मिल जा किसी दिन। बिना देर किये वह छुट्टी के लिए आफिस फोन लगाती है और बस का टिकट बुक कराती है।
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पता:
माधुरी शुक्ला 
कोटा (राजस्थान)


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