तुम देखोगे लक्ष्य भी पास में है
(कविता)
जब विचलित हो मन चिंतित भी हो।जब अनजाने डर से शंकित भी हो।
उस समय आप निर्भीक बनो।
अपने डर से आप स्वयं लड़ो।
एक पल मे ही डर गायब होगा।
चिंतित मन भी फिर खुश होगा।
खुशहाली होगी फिर गांवों में।
हर पिपल बरगद की छांवों में।
ना किसी का तुम उपहास करो।
ना किसी का तुम उपहास बनो।
जो भी करना हैं काम करो।
जग में तुम अपना नाम करो।
तुम बदनामी से डरो सदा।
पथ पर अपने अड़ो सदा।
फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में हैं।
तुम देखोगो लक्ष्य भी पास में हैं।
-०-
अजय कुमार व्दिवेदी
अजय कुमार व्दिवेदी
दिल्ली
-०-
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