कैसा आया नया जमाना
(कविता)
माँ की ममता लगे भुलाने ,कैसा आया नया ज़माना ।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।।१।।
बहु ब्याह मैं चाव से लाई,सीख गृहस्थी की सिखलाई ।
शायद कोई कमी रह गयी ,मैं ही उनको कभी न भाई ।
दबी ज़ुबाँ वो पति से कहती ,इनको आता नही निभाना ।।२।।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
हाथ पिया ने भी छिटकाया ,चले गए क्यूं तन्हा करके ।
साथ जियेंगे साथ मरेंगे ,वादे धुआँ -धुआँ सब करके ।
बहुत विवश लेकिन जिन्दा हूँ ,जीने का क्या करूँ बहाना ।।३।।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
विनती की दी लाख दुहाई ,दया ज़रा तो मुझ पर खाओ ।
इक कोने में पड़ी रहूंगी ,पकी उम्र में मत ठुकराओ ।
लेकिन बंद किये दर मुझ पर ,मुझको समझा है बेगाना ।।४।।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
किस्मत के हैं खेल अनोखे ,आज छिने हैं सभी सहारे ।
उन अपनों ने दिल को तोड़ा ,जिनको कहती आँख के तारे ।
मात-पिता अब लगते गाली ,बदल गया वो दौर पुराना ।।५।।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।
बीच राह लाचार खड़ी हूँ ,तुम ही सुनलो आन कन्हाई ।
बिदा किया बेटों ने घर से ,दुनियाँ से तुम करो बिदाई ।
अर्ज यही बस तुमसे मेरी ,दर-दर मुझको मत भटकाना ।।६।।
मेरे बच्चे कहते मुझसे ,माँ अब ढूंढो और ठिकाना ।।
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