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Monday, 13 April 2020

रहो न अबला बनकर (कविता) - भुवन बिष्ट

रहो न अबला बनकर
(कविता)
उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो।
रहो न अबला बनकर तुम,
भाग्य स्वयं का तुम ही बुनो।।
नारी जग जननी कहलाती,
बांधे पावनता की डोर।
मिटाती जग के अंधकार को,
उजियारा तुम से चहुँ ओर।।
फैलाने प्रकाश जगत में,
तुम ही अब रवि पुंज बनो।।
उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो। ...
पवित्रता भी तुम दिखलाती,
ममतामयी भी तुम बन जाती।
शिक्षा के दीपक से ही अब,
जीवन यह उजियारा कर दो।
कठिन संघर्षों की राहों से ,
लक्ष्य स्वंय का तुम ही चुनो।
रहो न अबला बनकर तुम,
भाग्य स्वयं का तुम ही बुनो।..
खुशियाँ संपन्नता है तुमसे,
जग जननी जग का आधार।
सहो न अत्याचार भी तुम,
शक्ति का स्वरूप बनो।।
विद्या संपन्न शक्ति स्वरूपा,
मिले लक्ष्य मंजिलें चुनो।
उठो जागो हे मातृशक्ति,
स्वयं की तुम पहचान बनो। ....-०-
पता- 
भुवन बिष्ट
(रानीखेत) अल्मोड़ा 
(उत्तराखंड)
-०-

***
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1 comment:

  1. बहुत बहुत बधाई है आदरणीय ! आँप को सुन्दर रचना के लिये।

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