इंसान हो तो ईमान की बात कर
(ग़ज़ल)
बेवजह इंसान पर यूँ ना घात कर।।
छल,कपट,छीना,झपटी, ये लूटमार।
चैन से सोने देते क्या रातभर ?
प्रेम की दौलत से बढ़कर कुछ नहीं।
लो लगी शर्त मेरी इसी बात पर।।
भेद क्या जब खून सब में है एक-सा।
फिर पाल न यूँ मैल दिल को साफ कर।।
दें वतन को जिन्दगी एकता के नाम पर।
मैं बढ़ाता हाथ तू भी अपना हाथ कर।।
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