(कविता)
मैंने देखा
कुछ लोग लाल गुलाब को
मसल रहे हैं,
लाल हँसिया की धार
इतनी भोथरी
हो गई है कि
गेहूँ की बालियाँ
नहीं कट रही हैं अब।
मीठी धीमी जहर वाला
किंगकोबरा
अपना फन बढ़ाकर
इतना विस्तृत कर लिया है
कि उसके छाया तले
सारी दुनिया
धीरे-धीरे
मर रही है
लेकिन
किसी को अपने मरने का
न अहसास है
न पछतावा।
-०-
आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद श्रीवास्तव
कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)
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