सभी के वास्ते
(ग़ज़ल)
कभी वादों से जो फिरता नहीं है ।
बशर सच्चा है वो, झूठा नहीं है ।।
मैं जिसका हो गया हूँ दिल से यारो।
न जाने वो मेरा है या नहीं है।।
सितम ढाने में तो अपने हैं सारे।
करम को पर कोई अपना नहीं है ।।
ख़ुशी के हैं बहुत हमराह मेरे।
मुसीबत में कोई मिलता नहीं है।।
ज़रूरत में तो है पूछा सभी ने।
मगर आगे कोई आया नहीं है ।।
परिन्दे उड़ गए सारे अचानक।
शज़र पर गो कोई खतरा नहीं है ।।
सभी के वास्ते जीता है' संजय ।
किसी से दुश्मनी करता नहीं है ।।
-०-
संजय कुमार गिरि
दिल्ली
दिल्ली
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